Saturday, June 1, 2013

आखें बंद करू तो बस तुम्हारी यादें हैं
तुम्हारी ही आखों से मैं रंग देखा करती हूँ
हंसती तो अब भी मैं सबके साथ हूँ
पर
तुम्हारे ही खमॊश सपनों में मुस्कुराती रहती हूँ
न किसी सितारे की चमक कम हुई है
न किसी फूल की खुशबु धुंधलाई है
तुम्हारी ही धुन गुनगुनाती हूँ
वही दुप्पट्टा अभी भी ओढ़ा करती हूँ
अब भी तुम्हारे सर का दर्द मेरी आखें नाम कर देता है
मेरे हर आसू में तुम बदल का एक कतरा घोल देते हो
जानते हो तुम भी
आओगे जो अबकी बारी
तुम्हारे कंधे पे ही सारे बादल बरस जाने दूंगी
भीग हम दोनों जायेंगे

No comments:

Post a Comment