Wednesday, May 15, 2013

कोयल

दूर कहीं  आम के पेड़ पर
कौवों के झुण्ड के बीच एक कोयल रहा करती थी
कर्कश आवाजों के बीच मुस्कुराकर कूका करती थी
सभी हैं रंग से समान
मन भी एक ही जैसा होगा 
मन में मासूम ख्याल बसाये
सभी से हँस के मिला करती थी
साथ दाना चुगने जाते थे 
शिकारी के जाल से एक दूसरे को बचाते थे
कोयल अब उनमे एक थी
गुनगुनाते हुए इधर उधर फुदकती थी
जानती कहाँ थी बेचारी कोयल   
कौवे नीयत से होते ही दोगले हैं
उसके पीछे मंद मंद मुस्काते थे
झूठा नाम लेके उसको छेड़ते थे
देखा एक दिन कोयल ने उनको
साथ तालाब जाना छूटा
कोमल मन का सपना टूटा
किसी ने उसको रोते हुए न देखा
चुप्पी को कमज़ोरी सोचा
मजबूर नहीं थी कोयल
एक एक आँसू उसकी माफ़ी थी

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