गुनगुनाते थे अल्फाज़ उनके
हम भी मासूम हुआ करते थे
पांव रखते थे चांदनी की रेत पर
रुई की गुडिया से खेला करते थे
दौर बदल जाता है
गुड़िया मैली हो गई है
उनकी नज़रें भी बूढ़ी हो चली हैं
गुफ्तगू खामोशी मे तब्दील होती जाती है
हम भी अब भीड़ के शोर मे सुकून तलाशा करते हैं.
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