Wednesday, May 15, 2013

दौर बदल जाता है

गुनगुनाते थे अल्फाज़ उनके
हम भी मासूम हुआ करते थे
पांव रखते थे चांदनी की रेत पर
रुई की गुडिया से खेला करते थे
दौर बदल जाता है
गुड़िया मैली हो गई है
उनकी नज़रें भी बूढ़ी हो चली हैं
गुफ्तगू खामोशी मे तब्दील होती जाती है
हम भी अब भीड़ के शोर मे सुकून तलाशा करते हैं.

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